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OIPA in India rep. Naresh Kadyan October 26, 2010
हम अंधविश्वासी कब सुधरेंगे? - Owl killing and sacrifice
क्या आपको पता है, दीपावली की पूर्व संध्या पर हजारो उल्लू बलि चढाए जाते है। लक्ष्मी देवी के वाहन उल्लू की बलि लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये दी जाती है। ये कैसी देवी है जो अपने वाहन की बलि पर प्रसन्न होती है। हर साल हजारो उल्लू जिन्हे हिमालय की तराई, मध्य प्रदेश, बिहार और पूर्वांचल के जंगलों से पकड़कर लाया जाता है। उल्लुओं की बलि देने के पीछे तर्क यह दिया जाता है कि लक्ष्मी जी ऐसी बलि से प्रसन्न होकर धनवान बनने का वरदान देती है।

वैसे भी उल्लू तांत्रिको का मनपसन्द बलि जीव है। इसके लिए जीतोड़ मेहनत करके उल्लू को ढूंढा जाता है और उसे दीवाली के एक दिन पूर्व बलि चढा दी जाती है। आज के वैज्ञानिक युग मे भी ऐसे अंधविश्वासी लोगो की कमी नही जो इस घृणित कार्य मे लिप्त है। दिल्ली मे उल्लू की मन्डी लाल किले के सामने, जामा मस्जिद के पीछे, मूलचन्द फ़्लाई ओवर, मिन्टो ब्रिज, महरौली गुड़गांवा रोड और आई एन ए मार्केट मे लगती है। इस सीजन मे उल्लू की कीमतें १५ हजार से लेकर ८० हजार तक पहुँच जाती है।

आखिर हम कब सुधरेंगे? कब बन्द करेंगे बेजुबान जानवरों पर जुल्म ढाना? अव्वल तो मै नही मानता कि इससे लक्ष्मी जी प्रसन्न होंगी, ये सब तांत्रिको, पंडितो का किया धरा है। एक परसेन्ट भी यदि इस बात मे सच्चाई है तो लानत है ऐसे इन्सान पर जो अपने स्वार्थ के लिए बेजुबान जानवरों का खून बहाता है। हम अंधविश्वासी लोग कब जागेंगे? कब फैलेगा ज्ञान का उजाला? जिस दिन हम ढोंगी तांत्रिको और पंडितो के जाल से निकलेंगे वही दिन हमारे लिए असली दीपावली होगी।
तार्किक होना या बुद्धि प्रधान होना कोई बुरी बात नहीं है। इंसान को वही बात स्वीकारनी चाहिए, जो तर्क की कसौटी पर खरी उतरे या जिसे बुद्धि स्वीकार करे। किंतु तर्क और बुद्धि की भी अपनी सीमा होती है। कुए के मेंढक की बुद्धि और तर्क यही कहते हैं कि यह दुनिया कुए के जितनी ही बड़ी है। क्योंकि वह कुएं से बाहर कभी गया ही नहीं। देवी-देवताओं के विषय में भी लोगों की ऐसी ही दुविधा है। गणेश की सवारी चूहा हो या लक्ष्मी का वाहन उल्लू, इसपर सहसा कोई विश्वास नहीं करता। यहां तक कि देवी-देवताओं के अस्तित्व पर भी शंका-संदेह किया जाता है। जबकि वास्तविकता यह है कि देवी-देवताओं के जो चित्र बनाए गए हैं वे प्रतीकात्मक हैं, जो उनके गुणों को व्यक्त करने का जरिया या संकेत होते हैं।

लक्ष्मी का वाहन उल्लू माना जाता है जो कि रात्रि यानि अंधेरे का निवासी है। अंधेरा सदैव असत्यता और अज्ञानता को जन्म देता है। यहां उल्लू अज्ञानी का प्रतीक है। उल्लू पर सवार लक्ष्मी अत्यंत चंचल मानी गई है। चंचल यानि कि जो एक जगह स्थिर ना रहे। यहां इस सारे प्रसंग का गहरा अर्थ यह है कि उल्लू जैसे अज्ञानी मनुष्य के पास यदि किसी तरह किस्मत या संयोग से लक्ष्मी आ भी गई तो वह टिकेगी नहीं। वह जैसे अचानक आई थी, वैसे ही चली भी जाएगी। जबकि मेहनती, ईमानदार और सच्चा इंसान ज्ञान को प्राप्त कर लेता है। ज्ञानी के पास जो लक्ष्मी आती है वह उल्लू पर सवार होकर नहीं बल्कि भगवान विष्णु के साथ गरुड़ पर सवार होकर आती है। जहां सत्य और ज्ञान है वहां विष्णु है जहां विष्णु है वहां उनकी चिरप्रिया लक्ष्मी स्थाई निवास करती है। लक्ष्मी विष्णु को छोड़कर कहीं नहीं जातीं।
उल्लू एक अनोखा पक्षी है। दिन में इसे कुछ दिखाई नहीं देता। रात में ही यह अपने शिकार के लिए निकलता है। उल्लू का रंग अधिकतर सुरमई होता है। कुछ उल्लू मटमैले होते है। इसका सिर काफी बड़ा, बिल्ली की तरह गोल और बालों से भरा होता है। आंखें मनुष्यों की तरह खोपड़ी में स्थित होती है। उल्लू को शिकारी पक्षी माना जाता है, परंतु इसका शिकार करना पाप माना जाता है। यह लक्ष्मी का वाहन भी है। उल्लू की तीन जातियां: घुग्घू उल्लू और खूसठ। इसमें से सबसे छोटे को उल्ले कहते हैं और सबसे बड़े को घुग्घु के नाम से जाना जाता है। घुग्घु कहलाने वाली जाति के बाल और पंख मुड़ कर सींग की तरह हो जाते हैं। इसकी तीन उंगलियां आगे की ओर होती है और एक पीछे की ओर। यह अपनी अगली उंगलियों को पीछे की ओर भी आसानी से मोड़ लेता है। पंख कोमल और कान बड़े-बड़े होते हैं। उड़ते समय यह अपने पंखों से बिल्कुल भी आवाज नहीं करता। रात के समय चाहे जितना भी सन्नाटा हो, इसके शिकार को इसके आने का बिल्कुल भी आभास नहीं होता। इसके पैर अंगूठे तक पंखों से ढके रहते हैं। यह शिकार को पूरे का पूरा निगल जाता है। इसलिए शिकार साफ करने के लिए उल्लू अपने पैरों की मदद नहीं लेता।उल्लू लगभग 14 इंच तक लंबा होता है। चूहे, मक्खियां, सांप ओर कीड़े-मकौड़े इसका ्िरप्रय भोजन है। उल्लू की भद्दी आवाज के कारण ही लोग इसे मनहूस समझते हं। मादा उल्लू अपने अंडे मई से जुलाई तक देती है। अंडे गिनती में तीन या चार होते है और उनका रंग सफेद होता है। उल्लू अपना घोंसला पुरानी इमारतों के खंडहरों, पेड़ों के खोखले तनों और सुराखों में बनाना पंसद करता है। उल्लू फसल को हानि पहुंचाने वाले कीड़ों को मारकर खा जाता है। इसलिए यह किसानों का मित्र पक्षी भी है। भारत के अतिरिक्त उल्लू संसार के लगभग सभी देशों में मिलता है।
-- गुजरात में उल्लू के आँख का प्रयोग लोग भोजन के रूप में करते हैं। ऐसी मान्यता है कि उल्लू की आँखें खाने से आँखों की रौशनी बढ़ती है। इसकी गुर्दा भी ऊँचे दाम पर बिकती है। वहीं उनके पैर और माँस का प्रयोग भोजन के साथ दवा के रूप में किया जाता है। विदेशों में उल्लू के पैर और पंख की काफी माँग है।
विशेषज्ञों की राय में उल्लू के माँस और पैर से कोई दवा नहीं बनता बल्कि ये अल्प जानकारी एवं सुनी-सुनाई रूढ़ीवादी बातें हैं, जिससे अल्पसंख्यक उल्लू प्रजाति के पक्षियों के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है। मध्य प्रदेश में कई जानवरों के चमड़े एवं चर्वी से दवा बनायी जाती है लेकिन इसके विश्लेशण की अभी आवश्यकता है। इन सब भ्रांतियों की वजह से गुजरात एवं मध्यप्रदेश उल्लू के अंगो का बाजार बन गया है, जबकि झारखण्ड और बिहार से उल्लूओं का सफाया हो रहा है। ये वेजुबान एवं संकटापन्न प्राणी, विलुप्प्ति के कगार पर इन अन्धविश्वासों के चलते पहुँच गये हैं।
वन विभाग का ध्यान उल्लूओं की लगातार हो रही कमी की ओर गया है तथा इनके संरक्षण की कारवाई शुरू हो गयी है। वहीं केन्द्र सरकार ने भी इस ओर पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने हेतु एक दिशा निर्दश राज्य सरकारों को भेजी हैं। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने सभी राज्यों को उल्लूओं की गणना कर उनके संरक्षण के लिए उपाय करने का निर्देश दिया है।
अतः हम कह सकते हैं कि अज्ञानता एवं रूढ़ीवादी विचार के वाहक कुछेक लाभुक लोग आम जनता के बीच उल्लू के अंगों के बारे भ्रांतियाँ फैलाकर जहाँ अपने धनोपार्यन का साधन बना लिया है, वहीं इस प्रजाति के जीवन को समाप्त करने का जुगाड़ कर दिया है। एक ओर इस प्राणी के इस धरती से विदाई की तैयारी कर दिया है, जिसका परिणाम ये होगा कि पर्यावरणीय असंतुलन पैदा होगा, वहीं आनेवाली पीढ़ी उल्लू को किताबों के पन्ने पर सिर्फ चित्र के रूप में देखेंगे। इसे रोकना हमारी भी जिम्मेवारी इस सामाजिक व्यवस्था में बनती है, इसपर गौर किया जाना चाहिए एवं इस रूढ़ी को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

नरेश कादयान,
अध्यक्ष, पीपल्स फॉर एनिमल हरियाणा,
अंतरराष्ट्रीय पशु रक्षा संगठन के भारतीय प्रतिनिधि
+91-9813010595, 9313312099


Naresh Kadyan,
Representative of the International Organization for Animal Protection
- OIPA in India,
Chairman, People for Animals Haryana,

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